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आधुनिक भारत की समझ एक वैकल्पिक दृष्टि नामक पुस्तक पिछले ढाई सौ वर्षों मे बीती इतिहास की घटनाओ का पुनः प्रस्तुतीकरण न होकर, उसके कुछ अनछुये पहलुओं, व उनसे जुड़े हुए प्रश्नो पर प्रकाश डालने का एक प्रयास है - जिनके बारे में लोगों की सोच समझ कुछ धुंधली सी दिखती है। यह एक सिलसिलेवार रूप मे लिखी हुई पुस्तक न होकर कुछ लेखों का संग्रह है, जिसे अलग - अलग समय में लेखक द्वारा विकसित किया गया था अलग अलग प्रकरण मे - किन्तु संदर्भ सभी का आधुनिक भारत ही है। प्रस्तुत पुस्तक इतिहास विषय पर किसी भी दार्शनिक तर्क-वितर्क करने का दावा नहीं करती है, अपितु आधुनिक काल के एक प्रतिष्ठित इतिहासकार जी. आर. एलटन द्वारा…mehr

Produktbeschreibung
आधुनिक भारत की समझ एक वैकल्पिक दृष्टि नामक पुस्तक पिछले ढाई सौ वर्षों मे बीती इतिहास की घटनाओ का पुनः प्रस्तुतीकरण न होकर, उसके कुछ अनछुये पहलुओं, व उनसे जुड़े हुए प्रश्नो पर प्रकाश डालने का एक प्रयास है - जिनके बारे में लोगों की सोच समझ कुछ धुंधली सी दिखती है। यह एक सिलसिलेवार रूप मे लिखी हुई पुस्तक न होकर कुछ लेखों का संग्रह है, जिसे अलग - अलग समय में लेखक द्वारा विकसित किया गया था अलग अलग प्रकरण मे - किन्तु संदर्भ सभी का आधुनिक भारत ही है। प्रस्तुत पुस्तक इतिहास विषय पर किसी भी दार्शनिक तर्क-वितर्क करने का दावा नहीं करती है, अपितु आधुनिक काल के एक प्रतिष्ठित इतिहासकार जी. आर. एलटन द्वारा लिखी हुई उस सामान्य सी बात का ही अनुसरण करती है जिसके अनुसार "The study and writing of history are justified in themselves". इसको लिखने का उद्देश्य न तो दार्शनिक है, न ही विवादात्मक। यह एक बहुत ही सीधा, सरल व आत्म-विवेचनात्मक तरीके से एक शिक्षणाभ्यासी के द्वारा अपने उत्सुक, जिज्ञासु व जागरुक छात्रों के हित मे किया गया एक प्रयास है, और जो अपने प्रॉफ़ेशन की उपयुक्तता पर प्रश्न करते हुए, उसके अंदर झाँकते हुए - अपनी भावना व विश्वास को पुस्तक के माध्यम से अभिव्यक्त कर रहा है।
Autorenporträt
डॉ. अरुणा सिन्हा वर्तमान में इतिहास विभाग, समाजिक विज्ञान संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय में एमेरिटस प्रोफेसर के पद पर आसीन हैं। इन्होंने आधुनिक भारतीय इतिहास के क्षेत्र में अपने मौलिक चिंतन और लेखन से जो ख्याति प्राप्त की, उसने उन्हें राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय जगत में न केवल स्थापित किया, बल्कि बौद्धिक जगत में हलचल भी पैदा की। विकल्प के लब्ध -प्राप्त केंद्र शूमाकर कॉलेज (लंदन) में उन्हें विश्वविख्यात वैज्ञानिक व "ताओ ऑफ फिजिक्स" के लेखक डॉक्टर फ्रिट योफ़ कापरा के साथ एक महीने की कार्यशाला (१९९३) में निमंत्रित किया गया।