ज़ीरो माइल एक ऐसी सीरीज़ है, जो हमारे चिर-परिचित शहरों को एक नयी नज़र से देखती है। इस सीरीज़ की हर किताब ऐसे जाने-माने लेखक की क़लम की देन है, जो उस शहर से गहरा लगाव रखते हैं, लेकिन शहर के विभिन्न पहलुओं का तटस्थ होकर विश्लेषण भी करते हैं। हिंदी के चर्चित लेखक-अनुवादक और पत्रकार भुवेन्द्र त्यागी मेरठ की स्मृतियों को सामने लाते हैं। इस किताब में शहर की सुबह, दोपहर और शाम के ख़ास रूप हैं। मोहल्लों व बाज़ारों के बसने और विकसित होने की कथा है। त्योहारों और मेलों की परंपरा, खान-पान, जासूसी उपन्यासों, साइकलों, सिनेमा, मज़दूरों के संघर्ष और सांप्रदायिक सौहार्द के विविध पहलुओं के जरिए शहर के चरित्र को जानने-समझने की कोशिश की गई है। इस तरह यह किताब यह इशारा भी करती है कि शहर ने क्या कुछ खोया है और कितना बचा लिया है। इसे न तो शहर का इतिहास कहा जा सकता है, न संस्मरण, न ही समाजशास्त्रीय विवेचन, लेकिन इसमें इन तीनों की ताक़त और रोचकता समाहित है।
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