शनिवार का दिन, शाम का समय, चाय की प्याली, पहाड़ों की छाँव और ठंडी हवा । एक लंबे सोच विचार के बाद ऑफिस से छुट्टी ले कर प्लान की गई एक वेकेशन के दौरान चाय की चुस्कियों और अकेलेपन के साथ जो ख़्याल मन में उमड़ सकते है, बस उन्हीं ख़्यालों का संग्रह है ये किताब। कुछ कवितायें है जो प्रकृति से दूर कंक्रीट जंगल में रहते रहते मन में आते विचारों को दर्शाती है जबकि कुछ है जो उसी प्रकृति की सराहना में लिखी गई है और कुछ और है जो कल और आज के बीच के सवालों को टटोलती है ।
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