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शनिवार का दिन, शाम का समय, चाय की प्याली, पहाड़ों की छाँव और ठंडी हवा । एक लंबे सोच विचार के बाद ऑफिस से छुट्टी ले कर प्लान की गई एक वेकेशन के दौरान चाय की चुस्कियों और अकेलेपन के साथ जो ख़्याल मन में उमड़ सकते है, बस उन्हीं ख़्यालों का संग्रह है ये किताब। कुछ कवितायें है जो प्रकृति से दूर कंक्रीट जंगल में रहते रहते मन में आते विचारों को दर्शाती है जबकि कुछ है जो उसी प्रकृति की सराहना में लिखी गई है और कुछ और है जो कल और आज के बीच के सवालों को टटोलती है ।

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Produktbeschreibung
शनिवार का दिन, शाम का समय, चाय की प्याली, पहाड़ों की छाँव और ठंडी हवा । एक लंबे सोच विचार के बाद ऑफिस से छुट्टी ले कर प्लान की गई एक वेकेशन के दौरान चाय की चुस्कियों और अकेलेपन के साथ जो ख़्याल मन में उमड़ सकते है, बस उन्हीं ख़्यालों का संग्रह है ये किताब। कुछ कवितायें है जो प्रकृति से दूर कंक्रीट जंगल में रहते रहते मन में आते विचारों को दर्शाती है जबकि कुछ है जो उसी प्रकृति की सराहना में लिखी गई है और कुछ और है जो कल और आज के बीच के सवालों को टटोलती है ।
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Autorenporträt
हिमाचल के सोलन में पैदा हुई प्रतिमा की परवरिश शिमला में हुई । हिमाचल में ही बी.टेक की पढ़ाई के बाद सॉफ़्टवेयर इंजीनियर की तरह गुड़गाँव में पहली नौकरी जॉइन की । गुड़गाँव की भीड़भाड़ से अक्सर भाग कर पहाड़ों में सुकून खोजते खोजते अपने रचनात्मक पक्ष पे ध्यान दिया और ख़ुद में एक पेपर आर्टिस्ट और लेखिका से मुलाक़ात की। कुछ ट्रैकिंग और कुछ रोड ट्रिप्स के ज़रिये हिमालय में काफ़ी घुमक्कड़ी के बाद वर्तमान में वह बैंगलोर में रह कर दक्षिण भारत के पश्चिमी घाट में सुकून खोज रही है । "नीर " उनका प्रथम काव्य संग्रह है और आशापूर्वक उनकी रचनात्मक यात्रा का एक अहम पड़ाव भी ।