इस पुस्तक में महाराजा सूरजमल का इतिहास लिखा गया है जिसमें महाराजा के काल की प्रमुख ऐतिहासिक घटनओं को तो स्थान दिया ही गया है साथ ही उस काल में मुगलों, मराठों एवं राजपूतों के बीच के राजनीतिक सम्बन्धों एवं प्रवृत्तियों की भी समीक्षा की गई है। महाराजा सूरजमल के युग की प्रवृत्तियाँ भारत के इतिहास में गहन विपत्ति-काल की सूचना देती हैं। उस काल में उत्तर-भारत को विनाशकारी शक्तियों द्वारा जकड़ लिया गया था। महाराजा सूरजमल ने भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा को अहमदशाह अब्दाली के विध्वंस से बचाने के लिए 10 हजार जाट वीरों का बलिदान देकर देश के समक्ष राष्ट्रीय राजनीति का आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने हजारों शिल्पियों एवं श्रमिकों को काम उपलब्ध कराया, किसानों की रक्षा की तथा ब्रजभूमि को उसका क्षीण हो चुका गौरव लौटाया। महाराजा ने गंगा-यमुना के हरे-भरे क्षेत्रों से रूहेलों, बलूचों तथा अफगानियों को खदेड़कर चम्बल से लेकर यमुना तक के विशाल क्षेत्रों की प्रजा को अभयदान दिया। यह एक रोचक एवं पठनीय पुस्तक है।
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