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इस पुस्तक में उन गूढ़ एवं रोचक बातों को लिखा गया है जो विगत लाखों वर्षों से राजस्थान के मनुष्यों की जीवन-शैली में इस प्रकार सम्मिलित हैं कि एक ओर तो मनुष्य को जीवन जीने में आनंद आता है तथा दूसरी ओर पर्यावरण के प्रत्येक अंग की रक्षा होती है। मानव सभ्यता प्रकृति की कोख से प्रकट होती है तथा उसी के अंक में पल कर विकसित होती है। मानव को जो कुछ भी मिलता है, प्रकृति से मिलता है। इस कारण मानव को, प्रकृति के अनुकूल आचरण करना होता है। प्रकृति के विपरीत किया गया आचरण, अंततः मानव सभ्यता के विनाश का कारण बनता है। राजस्थान के लोगों ने अपने सम्पूर्ण जीवन को इसी प्रकार गढ़ लिया है कि उनके किसी भी आचरण से…mehr

Produktbeschreibung
इस पुस्तक में उन गूढ़ एवं रोचक बातों को लिखा गया है जो विगत लाखों वर्षों से राजस्थान के मनुष्यों की जीवन-शैली में इस प्रकार सम्मिलित हैं कि एक ओर तो मनुष्य को जीवन जीने में आनंद आता है तथा दूसरी ओर पर्यावरण के प्रत्येक अंग की रक्षा होती है। मानव सभ्यता प्रकृति की कोख से प्रकट होती है तथा उसी के अंक में पल कर विकसित होती है। मानव को जो कुछ भी मिलता है, प्रकृति से मिलता है। इस कारण मानव को, प्रकृति के अनुकूल आचरण करना होता है। प्रकृति के विपरीत किया गया आचरण, अंततः मानव सभ्यता के विनाश का कारण बनता है। राजस्थान के लोगों ने अपने सम्पूर्ण जीवन को इसी प्रकार गढ़ लिया है कि उनके किसी भी आचरण से पर्यावरण को क्षति नहीं पहुंचती। आधुनिक जीवन शैली एवं पर्यावरणीय संस्कृति में किस प्रकार सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है, राजस्थान के लोगों का जीवन इसका जीता-जागता उदाहरण है।
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