ज्योति का चमकता सपना - रोबोट्स के बीच खिलता बचपनआज की गर्म शाम में, धूप ढल चुकी थी, लेकिन ज्योति के कमरे में एक अलग ही तरह की रोशनी चमक रही थी। कमरे की मेज पर सर्किट के तार एक जटिल नक्शे की तरह बिछे थे, छोटे-छोटे मोटर और सेंसर इधर-उधर बिखरे पड़े थे। ज्योति, मात्र 12 साल की एक जिज्ञासा से तिल-तिल करती छात्रा, पूरी गंभीरता से अपने रोबोट के नए अवतार को जन्म दे रही थी।उसकी उम्र के बच्चे जहां गुड़ियों और कार्टूनों में खोए रहते हैं, वहीं ज्योति की दुनिया बोल्ट, स्क्रू और कोडिंग में बसती थी। उसे स्कूल के रोबोटिक्स क्लब में घंटों बिताना, प्रतियोगिताओं में रोबोट लड़ते देखना और उन्हें खुद बनाकर देखना अच्छा लगता था। उसका कमरा उसके खुद के तकनीकी प्रयोगशाला में बदल गया था, जहाँ हर खाली डिब्बा, टूटा हुआ खिलौना या बेकार वायर भविष्य के किसी आविष्कार की प्रतीक्षा कर रहा था।ज्योति की रोबोट बनाने की ललक बचपन से ही थी। उसकी दादी स्वतंत्र भारत की पहली पीढ़ी की इंजीनियर थीं, उनकी कहानियों में ट्रेन इंजनों और मशीनों का जादू ज्योति के दिमाग में समा गया था। दादी की किताबों में छपे पुराने रोबोटों के चित्र उसे भविष्य दिखाते थे - एक ऐसा भविष्य जहां मशीनें हमारी साथी बनतीं, हमारा काम आसान करतीं और दुनिया को बदलतीं।