36,99 €
inkl. MwSt.
Versandkostenfrei*
Versandfertig in über 4 Wochen
  • Gebundenes Buch

एक अनाम कवि की कविताएँ गद्य में जिस यथार्थ को उसके भौतिक विवरणों में अंकित किया जाता है कविता उसे अक्सर उन बिम्बों से खोलती है जो उस यथार्थ को भोगते हुए मनुष्य के मन और जीवन में बूँद-बूँद संचित होते रहते हैं। यह जैसे सत्य को, उसकी सम्पूर्णता को दूसरे सिरे से पकड़ना है। विषय यहाँ भी वही ठोस यथार्थ और उसकी छवियाँ हैं लेकिन कवि की कविता उसे सीधे न देखकर उसके उपोत्पादों के आइनों में रखकर जाँचती है। जो भाषा में, शब्दों में, विभिन्न अर्थ-परम्पराओं और अवधारणाओं में आकर एक अमूर्त लेकिन कहीं ज्यादा प्रभावशाली सत्ता हासिल कर लेते हैं। मसलन इस संग्रह की कविता 'कामयाबी'। यह कामयाब आदमी को नहीं उसके उस पद…mehr

Produktbeschreibung
एक अनाम कवि की कविताएँ गद्य में जिस यथार्थ को उसके भौतिक विवरणों में अंकित किया जाता है कविता उसे अक्सर उन बिम्बों से खोलती है जो उस यथार्थ को भोगते हुए मनुष्य के मन और जीवन में बूँद-बूँद संचित होते रहते हैं। यह जैसे सत्य को, उसकी सम्पूर्णता को दूसरे सिरे से पकड़ना है। विषय यहाँ भी वही ठोस यथार्थ और उसकी छवियाँ हैं लेकिन कवि की कविता उसे सीधे न देखकर उसके उपोत्पादों के आइनों में रखकर जाँचती है। जो भाषा में, शब्दों में, विभिन्न अर्थ-परम्पराओं और अवधारणाओं में आकर एक अमूर्त लेकिन कहीं ज्यादा प्रभावशाली सत्ता हासिल कर लेते हैं। मसलन इस संग्रह की कविता 'कामयाबी'। यह कामयाब आदमी को नहीं उसके उस पद को सम्बोधित है जो उसने हासिल किया है-कामयाबी। यहीं से कवि उस पूरी सामाजिक प्रक्रिया को खोलता है जिसका अर्थ इस शब्द में समाहित होकर हमारी चेतना का हिस्सा हो जाता है। और हम उसे नैतिक-अनैतिक के परे एक मूल्य के रूप में धारण कर लेते हैं। इस संग्रह में और भी ऐसी अनेक कविताएँ हैं जो समाज से नहीं उसके $फलसफ़े को सम्बोधित हैं, जिसे हम पहले धीरे-धीरे रचते हैं और फिर उसके सहारे जीना शुरू कर देते हैं। उसके बरक्स खड़ी है कविता, जो कवि के अपने एकान्त, अपने मूल्यों और मनुष्यता की अपनी बड़ी परिभाषा के साथ सृष्टि को बचाने-बढ़ाने की चिन्ता में व्यस्त है। संयोग नहीं कि 'भाषा', 'शब्द' और 'कविता' आदि शब्दों का प्रयोग यहाँ अनेक कविताओं में अनेक बार होता है। दरअसल यही वे हथियार हैं जो यथार्थ की अमूर्त व्याप्तियों का मु$काबला कर सकते हैं। 'शब्द की चमक और उसकी ताकत का $खयाल / चारों ओर की बेचारगी में / एक विस्मय था / ता$कत का इकट्ठा होते जाना / लोग जान गए थे / और वे अपने बचाव में / छिप रहे थे / हालाँकि शब्द उन्हें बाहर निकलने के लिए / पूरी ता$कत से दे रहे थे आवाज़। ये कविताएँ पाठक को