प्रस्तुत कहानी-संग्रह 'कुछ टूटने की आवाज' की अधिकतर कहानियों में कोमल भावों, जैसे जमीर, भरोसा, ह्रश्वयार, मनोबल, धैर्य, सरलता आदि के आहत होने या टूटने-बिखरने से मची अंदरूनी उथलपुथल और उससे उपजी भावनाओं में बहकर किए गए बाह्य कार्यकलापों का काल्पनिक चित्रण है।टूटने से आवाज होती है। फिर टूटने वाली वह चीज भले ही भौतिक अस्तित्व रखती हो, जैसे क्रॉकरी, शीशा, पत्थर अथवा फर्नीचर या जिसका भौतिक अस्तित्व न हो, जैसे भरोसा, जमीर, मनोबल या ह्रश्वयार। दोनों के टूटने पर मन दुखता है। दोनों तरह की चीजों के टूटने की आवाज हमारा ध्यान अपनी ओर खींचती है; कुछ करने के लिए कहती है।भौतिक वस्तुओं के टूटने के बाद हम उन्हें मरम्मत कराकर ठीक कर लें या यदि हमारे पास पैसा है तो उन्हें कूड़ेदान में फेंककर दूसरी खरीद लें। हमारे व्यक्तित्व की अभौतिक चीजों के टूटने पर भरपाई इतनी आसान नहीं होती। जमीर, भरोसा, ह्रश्वयार और मनोबल किसी भी कीमत पर बाजार में नहीं मिलते। उन्हें सिर्फ जोड़ा जा सकता है, और जोडऩे पर भी गाँठ पड़ जाती है। इसलिए इन्हें सँभालकर रखें।