"मेरी आँखों में जागती हैं/ किसी की उम्मीदें / किसी की राहतें / आँखों में सो जाती हैं"। ये पंक्तियाँ लिखने वाले सतीश देशपाण्डे 'निर्विकल्प' जी का यह पहला काव्य संग्रह है। इसमें कविताएँ, हाइकु और क्षणिकाएँ संग्रहित हैं। सतीश जी के पास सहज, सरल और अपनी खुद की एक भाषा है। वे अपनी कविताओं के लिए अपने अनुभव संसार से विषय चुनते हैं, और उस विषय के साथ पूरी तरह से न्याय करते हुए, सहज और सुंदर भाषा के साथ कविता पूर्ण करते हैं। सतीश जी की माँ भी कविताएँ लिखती थीं, वहीं से इन्हें कविता लिखने की प्रेरणा मिली। अपनी भूमिका में सतीश जी बहुत अच्छी बात कहते हैं कि एक कवि के लिए मंच के पहले नेपथ्य ज़रूरी है। उन्होंने कविता संग्रह लाने के पहले कुछ संस्थाओं का संचालन किया और अनेक लोगों को इसमें सहभागी बनाया ताकि वे अपनी रचनाओं को सबके सामने प्रस्तुत कर सकें। 'पल्लविनी', 'चेतना' और 'त्रिविधा' ऐसी तीन संस्थाएँ संचालित की गईं। यह सब वे तीस वर्षों तक करते रहे। इस कविता संग्रह उनका यह अनुभव सीधा-सीधा दिखता है। अपनी कविताओं में वे माँ को याद करते हैं। एक कविता में लिखते हैं कि- 'माँ एक नदी है, जो कभी सूखती नहीं' इसी तरह एक और कविता की बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ 'अपने भीगे अधरों से/ सुमनों पर मधु वर्षा कर दो/वे रोमांचित और व्याकुल हैं/ तुम्हारा स्पर्श पाने को '। वे एक अन्य हाइकु कविता में कहते हैं, 'सबसे ज्यादा डरावना होता है/डर का डर ' । वे कविता के भीतर, दो पंक्तियाँ लिख कर बहुत बड़ी बात कह देते हैं, जब वे कहते हैं, तुम कहते रहे, मत सह, मत सह/मैं कहता रहा, सहमत सहमत।' अन्य कविताओं में भी वे मुखर ढंग से प्रभावित करते हैं, उनमें से प्रमुख कविताएँ हैं, 'मौन का खंडन नहीं होता', 'लड़की होने का मतलब', 'विरह की वर्षगाँठ', 'मेरे हाथ रुक गए', 'ठूंठ पर कोंपल'।
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