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भारत में उपनिवेशवाद और राष्ट्रवाद के इतिहास को 'राज से स्वराज' में लिपिबद्ध किया गया है। साथ ही इस पुस्तक में कुछ सैद्धांतिक प्रश्नों पर भी विचार किया गया है। भारत की गुलामी की कहानी जितनी दर्दनाक और हृदय-विदारक है, उतना ही रोमांचकारी है इसका स्वतंत्रता संग्राम। अपने अद्वितीय नेतृत्व-क्षमता, गौरवमयी गाथा और अहिंसक वैचारिक आधार के चलते भारत की आजादी की लड़ाई इतिहासकारों का ध्यान बरबस आकर्षित करती रही है। यह पुस्तक मूलतः स्नातक और स्नातकोत्तर कक्षाओं के लिए उच्चस्तरीय और प्रामाणिक पाठ्यपुस्तक के रूप में प्रकाशित की गई है। यह लेखक के जीवनपर्यंत शोध, अध्ययन और अध्यापन की निष्पत्ति है। इस विषय पर…mehr

Produktbeschreibung
भारत में उपनिवेशवाद और राष्ट्रवाद के इतिहास को 'राज से स्वराज' में लिपिबद्ध किया गया है। साथ ही इस पुस्तक में कुछ सैद्धांतिक प्रश्नों पर भी विचार किया गया है। भारत की गुलामी की कहानी जितनी दर्दनाक और हृदय-विदारक है, उतना ही रोमांचकारी है इसका स्वतंत्रता संग्राम। अपने अद्वितीय नेतृत्व-क्षमता, गौरवमयी गाथा और अहिंसक वैचारिक आधार के चलते भारत की आजादी की लड़ाई इतिहासकारों का ध्यान बरबस आकर्षित करती रही है। यह पुस्तक मूलतः स्नातक और स्नातकोत्तर कक्षाओं के लिए उच्चस्तरीय और प्रामाणिक पाठ्यपुस्तक के रूप में प्रकाशित की गई है। यह लेखक के जीवनपर्यंत शोध, अध्ययन और अध्यापन की निष्पत्ति है। इस विषय पर उपलब्ध पुस्तकों से इसे कुछ अलग रखने का प्रयास किया गया है। इसमें घटनाक्रम के स्थान पर विषयानुकूल लेखन पद्धति को अपनाया गया है। साथ ही, इसमें आधुनिक भारत के इतिहास के हर पहलू और पक्ष पर गंभीरता से विचार किया गया है। अपनी रोचक शैली, संप्रेषण की सहजता और भाषा प्रवाह के चलते यह पुस्तक पठनीय-माननीय बन गई है। अंग्रेजी में इस पुस्तक के अनेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। पाठकों की माँग पर इसका हिंदी का यह संवर्द्धित-परिवर्द्धित संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है। यह पुस्तक राजनीति विज्ञान तथा आधुनिक भारत के इतिहास के छात्रों के साथ-साथ सामान्य पाठकों के लिए भी समान रूप से उपयोगी साबित होगी।