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भूल कर सारी भूलों को, आज सिर्फ, जी लेते हैं चल..... खुदगर्ज़ी के रेशों से, कुछ लम्हें बिन लेते हैं, चल..... हाथ किसी का थाम के, दर्द, दर्ज करा आते हैं, चल..... कोई आँख सूनी दिख गयी तो, दो बातें अर्ज करा आते हैं, चल...... स्नेहा विश्वकर्मा अपनी कविताओं के जरिये उन अनुभवों की एक झलक दिखती हैं, जिनसे ज़िन्दगी हर रोज़ हो कर गुजरती हैव्यक्तिगत अनुभव से स्नेहा बताती हैं है की एक महिला कैसे अपने आप को अलग महसूस करती है, मुसीबतों को झेलत.

Produktbeschreibung
भूल कर सारी भूलों को, आज सिर्फ, जी लेते हैं चल..... खुदगर्ज़ी के रेशों से, कुछ लम्हें बिन लेते हैं, चल..... हाथ किसी का थाम के, दर्द, दर्ज करा आते हैं, चल..... कोई आँख सूनी दिख गयी तो, दो बातें अर्ज करा आते हैं, चल...... स्नेहा विश्वकर्मा अपनी कविताओं के जरिये उन अनुभवों की एक झलक दिखती हैं, जिनसे ज़िन्दगी हर रोज़ हो कर गुजरती हैव्यक्तिगत अनुभव से स्नेहा बताती हैं है की एक महिला कैसे अपने आप को अलग महसूस करती है, मुसीबतों को झेलत.