भगवान झूठ ना बुलवाए, कविता लेखन तो स्कूल से ही शुरू हो गया था लेकिन कबीर के दोहों की 'पैरोडी', से। कभी सोचा नहीं था एक दिन अपना ओरिजीनल काव्य संग्रह प्रकाशित होगा। लेकिन हाँ, शुरू से ही कुछ नया, कुछ लीक से हट कर करने की सनक थी। शायद... और एक बात। शुभचिंतकों के लाख समझाने के बाद भी हमेशा दिल को दिमाग़ से अधिक ईमानदार समझा और उसी की सुनी। पिछले ४५ सालों से अमिताभ श्रीवास्तव हिंदुस्तान टाइम्ज़, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नवजीवन, नैशनल हेरल्ड आदि में स्तंभकार हैं। 'कुछ इधर की कुछ उधर की' में व्यंग्य, शब्दों की हेरा-फेरी, सामाजिक दर्द तो है ही लेकिन इसकी अधिकतर रचनायें अगर करोना-ग्रस्त लगें तो वही इस पुस्तक की प्रेरणा भी हैं।
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