प्यार, इश्क़ और मोहब्बत में जब तक जुदाई ना हो तब तक कुछ ना कुछ अधूरा सा लगता है। जुदाई दर्द भी देती है, जुदाई यादों की बारात में तन्हा अकेली रात में साथ भी देती है। कभी बस यूॅं ही हॅंसा देती है, पर मत पूछो कभी कितना रुला देती है। कभी टिप-टिप बरसती बरसात की बूंदे तो कभी बसंती बयार विरह की टीस को हवा दे देती है। कभी सामने होते हुए भी अजनबी से लगते है वो, तो दुनियाँ छोड़ कर जाने के बाद भी अपने से लगते है वो। बस ऐसे ही कुछ पलों को कविताओं का रूप देकर अपनी प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से आप तक पहुॅंचने का प्रयास कर रहा हूॅं।