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यह पुस्तक ‘आखिर कब तक’ एक सच्ची दास्तां लेखिका धनेश थरेजा द्वारा लिखी गई है। इस पुस्तक में लेखिका की एक दोस्त, जो सड़सठ वर्ष की हो चुकी है, काफी लंबे समय के बाद लेखिका धनेश थरेजा से मिलती है और अपनी शादी के बाद की दर्दभरी दास्तां शेयर करती है जो वह कभी किसी को बता नहीं पाई थी, सिर्फ अपने रिश्तों को बचाए रखने के लिए। उसकी दास्तां को सुनने के बाद लेखिका की आँखों में आँसू आ जाते हैं और लेखिका अपनी दोस्त की, उसी के शब्दों में बताई हुई सच्ची और दर्दनाक दास्तां को इस पुस्तक में लिख देती हैं, वो इसलिए कि इसे वे सब लोग पढ़ सकें जो चुप रहकर, बंद दरवाजों के पीछे रोकर, अपनी लड़ाई खुद लड़कर सबके सामने मुस्कराते रहते हैं। ऐसा क्यों करते हैं?…mehr

Produktbeschreibung
यह पुस्तक ‘आखिर कब तक’ एक सच्ची दास्तां लेखिका धनेश थरेजा द्वारा लिखी गई है। इस पुस्तक में लेखिका की एक दोस्त, जो सड़सठ वर्ष की हो चुकी है, काफी लंबे समय के बाद लेखिका धनेश थरेजा से मिलती है और अपनी शादी के बाद की दर्दभरी दास्तां शेयर करती है जो वह कभी किसी को बता नहीं पाई थी, सिर्फ अपने रिश्तों को बचाए रखने के लिए। उसकी दास्तां को सुनने के बाद लेखिका की आँखों में आँसू आ जाते हैं और लेखिका अपनी दोस्त की, उसी के शब्दों में बताई हुई सच्ची और दर्दनाक दास्तां को इस पुस्तक में लिख देती हैं, वो इसलिए कि इसे वे सब लोग पढ़ सकें जो चुप रहकर, बंद दरवाजों के पीछे रोकर, अपनी लड़ाई खुद लड़कर सबके सामने मुस्कराते रहते हैं। ऐसा क्यों करते हैं?