जंग कौन पसंद करता है ? बहस किसे पसंद है ? किसी बात पर, उलझ कर क्या मिलेगा ? इन सभी सवालों का जवाब सकारात्मक तो नहीं है, लेकिन कई बार ऐसे हालात पैदा हो जाते है कि, जीवन जंग का मैदान सा लगने लगता है; और जंग चाहे हथियारों से लड़नी पड़े या ज़ुबान पीछे नहीं हटना चाहिए। सवाल उठाने वाले को प्रत्येक सवाल का जवाब कभी कटुता के साथ, तो कभी वाकपटुता के साथ देना चाहिए। चाहे वो सवाल हमारे अंतर्मन के हो, या फिर शत्रुओं के हो, या किसी उस व्यक्ति के हो, जिसे दूसरों को परेशान देख कर आनन्द की अनुभूति होती है। इन्हीं सब उलझनों को कविताओं के माध्यम से सुलझाते हुए अपनी एक और पुस्तक आप सब को समर्पित कर रहा हूँ।