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प्रेम कलश (eBook, ePUB) - सत्येंद्र; बहार, विपिन
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  • Format: ePub

About the book: उल जुलूल बात करने की आदत नहीं हमे तो सीधा आपके दिल पे चलते है खोल देते है दिल क सरे दरवाजे और और बेनकाब कर देते है मोहब्बत को। इतने चेहले लगाए आखिर क्यों फिरती है ये मोहब्बत कुछ तो ख्याल किया होता इस बेजुबान दिल का जो खून से लतफत धड़कना भी छोड़ दिया इस आस में की वो रात आएगी बरसात में। इस कलश संग्रह में दो कवियों की सामूहिक रचनाओं को शामिल किया गया है जो आपके दिलो के हाल से लेकर रुहों से भी सवाल करेंगे। भूल के वो सारी कश्मकश दिल क दरम्यान छिपे ख़ामोशी को भी हासायेंगे। तो डालिये एक झलक इस तोहफा के अंदर और ढूंढ़ लीजिये अपना सारा हथियार जो आपके दिल को सुकून देता हो। प्यार को परिभाषित…mehr

Produktbeschreibung
About the book:
उल जुलूल बात करने की आदत नहीं हमे तो सीधा आपके दिल पे चलते है खोल देते है दिल क सरे दरवाजे और और बेनकाब कर देते है मोहब्बत को। इतने चेहले लगाए आखिर क्यों फिरती है ये मोहब्बत कुछ तो ख्याल किया होता इस बेजुबान दिल का जो खून से लतफत धड़कना भी छोड़ दिया इस आस में की वो रात आएगी बरसात में। इस कलश संग्रह में दो कवियों की सामूहिक रचनाओं को शामिल किया गया है जो आपके दिलो के हाल से लेकर रुहों से भी सवाल करेंगे। भूल के वो सारी कश्मकश दिल क दरम्यान छिपे ख़ामोशी को भी हासायेंगे। तो डालिये एक झलक इस तोहफा के अंदर और ढूंढ़ लीजिये अपना सारा हथियार जो आपके दिल को सुकून देता हो। प्यार को परिभाषित करने की बहुतो ने कोशिश की लेकिन इस मोहब्बत को कोई किसी तरह की जंजीर से बांध ही नहीं सकता। विस्वास नहीं होता न, तो एक बार लालच त्याग करके प्यार कीजिये बाकि विपिन और सत्येंद्र तरफ से मोहब्बत मुबारक हो