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काल चक्र (eBook, ePUB) - सुकुमार सेनगुप्ता, चंदन
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  • Format: ePub

About the book: कभी कभी हम यह सोचने लग जाते हैं कि हनुमान जी भला कैसे छलाँग लगाकर लंका गये होंगे ! यह भी कभी संभव हो सकता है ! उससे भी ज़्यादा अचरज में डालने वाला विषय है दशानन - याने की दस सिर वाला इंसान ! ऐसा तो हो ही नहीं सकता ! वस्तुतः लंका नरेश की बुद्धि और कुशलता का बखान करते समय ऐसा रूपक सामने आया महाकाव्य में कवि ऐसे रूपक का इस्तेमाल करते आए हैं यह तो हमारी मजबूरी है कि हम विषयों को समझना चाहते ही नहीं भेद बुद्धि की गुलामी करनेवालों को मौके मिल ही जाते हैं संतों की वाणी में खोट निकालते निकालते सोने का सिक्का भी मिट्टी जैसा बन जाता है उमा का शरीर लेकर महादेव इतने इतने जगहों पर कैसे गये…mehr

Produktbeschreibung
About the book:
कभी कभी हम यह सोचने लग जाते हैं कि हनुमान जी भला कैसे छलाँग लगाकर लंका गये होंगे ! यह भी कभी संभव हो सकता है ! उससे भी ज़्यादा अचरज में डालने वाला विषय है दशानन - याने की दस सिर वाला इंसान ! ऐसा तो हो ही नहीं सकता ! वस्तुतः लंका नरेश की बुद्धि और कुशलता का बखान करते समय ऐसा रूपक सामने आया महाकाव्य में कवि ऐसे रूपक का इस्तेमाल करते आए हैं यह तो हमारी मजबूरी है कि हम विषयों को समझना चाहते ही नहीं भेद बुद्धि की गुलामी करनेवालों को मौके मिल ही जाते हैं संतों की वाणी में खोट निकालते निकालते सोने का सिक्का भी मिट्टी जैसा बन जाता है उमा का शरीर लेकर महादेव इतने इतने जगहों पर कैसे गये होंगे ! वो तो रहने ही दें, विष्णु अपने चक्र के सहारे सती के पार्थिव शरीर को टुकड़ों में कैसे बाँटा होगा ! इस प्रकार की द्विविधा भी हमारे मन में धर्म और विज्ञान के द्वंद के कारण ही उत्पन्न होता है