कभी-कभी किसी रिश्ते का साथ जीवन में इतनी गहरी छाप छोड़ता है कि उसके दूर चले जाने के बाद भी हम उसके साथ बिताए हुए पलों को ख़यालों में ही सही पर हर पल जीते हैं, अपनी रूह में उसके अहसास को तलाशते और वह न होते हुए भी हमारी हक़ीक़त बन जाता है। कुछ ऐसा ही साथ अनोखी और अविनाश का भी था जिसे अनोखी आज भी वर्तमान की तरह जीती है। ये कहानी आँखों से शुरू होकर कई उतार-चढ़ावों से गुज़रती है और प्रेम की पराकाष्ठा को पार कर शादी के मंडप तक पहुँच जाती है। फिर उस अधूरे मंडप से एक और कहानी शुरू होती है जो सब कुछ खोकर भी अपने आप को न खोने की कहानी है। गिर कर उठना और उठकर अपने आप को फिर चलना सिखाती है। इस कहानी के कई किरदार और कई रंग हैं जो दोस्ती, प्यार, धोखा, साथ, विश्वास और बेनामी रिश्तों की सच्चाई से रूबरू करवाते हैं। तो दूसरी तरफ इस कहानी की कविताएँ और शायरियाँ इसे एक फिल्म सा रोचक बनाती हैं।
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