भूमिका
बिना पढ़े आपके मन माफिक भूमिका लिखने में सिद्धहस्त तमाम पेशेवर भूमिका लेखकों को निराश करते हुए मैं बिना भूमिका के ही इस संग्रह को सीधे पाठकों तक जाने दे रहा हूँ।
वे ही इसे पढ़कर इसकी भूमिका लिखेंगे।
यूँ भूमिका लिखवाना आज मुश्किल नहीं रह गया। लेखन से चुके हुए बहुत से लोग भूमिका लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं। बेचारे गाहे बगाहे लोगों को फोन कर पूछते रहते हैं "तुम्हारा जो संग्रह आने वाला था, उसका क्या हुआ? कब तक लाने का विचार है? भूमिका जरूर देना उसमें। भूमिका से किताब में जान आ जाती है। बिना भूमिका के किताब विधवा स्त्री की तरह लगती है। किसी न किसी से भूमिका जरूर लिखवा लेना। तुम्हें तो वैसे भी कोई मना नहीं करेगा, फिर भी कोई न मिले तो हम तो हैं ही, कोई संकोच न करना। वो भूमिका लिखेंगे तुम्हारी किताब की कि तुम भी क्या कहोगे। भूमिका पढ़कर लोग दांतों तले उंगली दबा लेंगे। तुम्हें आधुनिक कबीर, परसाई, जोशी जो तुम कहो या चाहो, सिध्द कर देंगे। "
उनका कहना सही भी है। मुझे पता है, वे अब तक सैकड़ों कबीर, परसाई, जोशी बना चुके हैं और मुझे भी बनाकर ही छोड़ेंगे।
मैं उनसे यह पाप नहीं करवाना चाहता। मैं जो हूँ, वही बने रहकर बना रहना चाहता हूं।
उनमें से कुछ ने तो बाकायदा घर के बाहर अपने नाम के नीचे "भूमिका लेखक "लिखवा रखा है।
फिर नीचे लिखा है --यहाँ सभी तरह की भूमिकाएंउचित दरों पर लिखी जाती हैं।
ये लोग हर तरह की भूमिकाएं हाजर स्टॉक रखते हैं। जाते ही कुछ भूमिकाओं के नमूने आपको दिखा देंगे।
कहेंगे "मुझे दो दशक से भी ज्यादा भूमिका लिखते हो गए, आज तक कोई शिकायत नहीं आई किसी की तरफ से। "
ये हर विधा की किताब की भूमिका लिखने को तैयार रहते हैं।
ये इतने सिद्ध पुरुष होते हैं कि बिना किताब को देखे पढ़े ही तीन चार पेज की बढ़िया चमचमाती भूमिका लिख मारते हैं।
और मजाल कि कोई इस बात को पकड़ सके।
जिस किताब की भूमिका लिखते हैं, उसकीचार छै बढ़िया सी समीक्षाएं भी ये तैयार रखते हैं और अपने पालतू लेखकों के नाम से अपने गिरोह के अखबारों में छपवा देते हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि ये सारे काम उचित और प्रायः रियायती दरों पर किये जाते हैं। आपकी किताब छपी नहीं कि समीक्षाएं आनी शुरू हो जाएंगी।
आजकल ये लोग भूमिका लेखन को साहित्य की स्वतन्त्र विधामाने जाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
ऐसे दिव्य प्रतिभा के धनी भमिका पुरुषों को दरकिनार करते हुए पाठकों के बलबूते किताब लाना बहुत जोखिम का काम है, पर मैं वो जोखिम उठा रहा हूँ।
सभी पेशेवर भूमिका लेखकों से क्षमा मांगते हुए संग्रह आपको सौंप रहा हूँ।
बिना पढ़े आपके मन माफिक भूमिका लिखने में सिद्धहस्त तमाम पेशेवर भूमिका लेखकों को निराश करते हुए मैं बिना भूमिका के ही इस संग्रह को सीधे पाठकों तक जाने दे रहा हूँ।
वे ही इसे पढ़कर इसकी भूमिका लिखेंगे।
यूँ भूमिका लिखवाना आज मुश्किल नहीं रह गया। लेखन से चुके हुए बहुत से लोग भूमिका लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं। बेचारे गाहे बगाहे लोगों को फोन कर पूछते रहते हैं "तुम्हारा जो संग्रह आने वाला था, उसका क्या हुआ? कब तक लाने का विचार है? भूमिका जरूर देना उसमें। भूमिका से किताब में जान आ जाती है। बिना भूमिका के किताब विधवा स्त्री की तरह लगती है। किसी न किसी से भूमिका जरूर लिखवा लेना। तुम्हें तो वैसे भी कोई मना नहीं करेगा, फिर भी कोई न मिले तो हम तो हैं ही, कोई संकोच न करना। वो भूमिका लिखेंगे तुम्हारी किताब की कि तुम भी क्या कहोगे। भूमिका पढ़कर लोग दांतों तले उंगली दबा लेंगे। तुम्हें आधुनिक कबीर, परसाई, जोशी जो तुम कहो या चाहो, सिध्द कर देंगे। "
उनका कहना सही भी है। मुझे पता है, वे अब तक सैकड़ों कबीर, परसाई, जोशी बना चुके हैं और मुझे भी बनाकर ही छोड़ेंगे।
मैं उनसे यह पाप नहीं करवाना चाहता। मैं जो हूँ, वही बने रहकर बना रहना चाहता हूं।
उनमें से कुछ ने तो बाकायदा घर के बाहर अपने नाम के नीचे "भूमिका लेखक "लिखवा रखा है।
फिर नीचे लिखा है --यहाँ सभी तरह की भूमिकाएंउचित दरों पर लिखी जाती हैं।
ये लोग हर तरह की भूमिकाएं हाजर स्टॉक रखते हैं। जाते ही कुछ भूमिकाओं के नमूने आपको दिखा देंगे।
कहेंगे "मुझे दो दशक से भी ज्यादा भूमिका लिखते हो गए, आज तक कोई शिकायत नहीं आई किसी की तरफ से। "
ये हर विधा की किताब की भूमिका लिखने को तैयार रहते हैं।
ये इतने सिद्ध पुरुष होते हैं कि बिना किताब को देखे पढ़े ही तीन चार पेज की बढ़िया चमचमाती भूमिका लिख मारते हैं।
और मजाल कि कोई इस बात को पकड़ सके।
जिस किताब की भूमिका लिखते हैं, उसकीचार छै बढ़िया सी समीक्षाएं भी ये तैयार रखते हैं और अपने पालतू लेखकों के नाम से अपने गिरोह के अखबारों में छपवा देते हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि ये सारे काम उचित और प्रायः रियायती दरों पर किये जाते हैं। आपकी किताब छपी नहीं कि समीक्षाएं आनी शुरू हो जाएंगी।
आजकल ये लोग भूमिका लेखन को साहित्य की स्वतन्त्र विधामाने जाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
ऐसे दिव्य प्रतिभा के धनी भमिका पुरुषों को दरकिनार करते हुए पाठकों के बलबूते किताब लाना बहुत जोखिम का काम है, पर मैं वो जोखिम उठा रहा हूँ।
सभी पेशेवर भूमिका लेखकों से क्षमा मांगते हुए संग्रह आपको सौंप रहा हूँ।
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