सात रंगों का अनुभव
जीवन के अर्थ और अनुभवों को ले कर कहानी का सृजन होता है। मैं भी इस अनुभव का अपवाद नहीं हूँ। एक तरफ नौकरी दूसरी ओर घर- संसार के जंजाल के बीच हृदय में सृजनात्मकता की छटपटाहट ही मेरा कथा संसार है। मेरे चारों ओर घूमते मनुष्यों का चरित्र ही मेरी कहानी का चरित्र है। इनमें व्याप्त शून्यभाव, अहंकार, त्याग, प्रेम, तीतीक्षा सब मेरे कथानक के अंश हैं।
कभी-कभी मैं इनके जीवन में स्वयं का अनुभव कर पाती हूँ। कभी इनके हृदय-दर्पण में मुझे अपना प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है। यही अनुभव कभी-कभी शब्दबद्ध होकर मेरे हृदय में उतर आता है। ऐसा लगता है- वे चरित्र, घटनाएँ मेरे द्वारा उकेरे जाने की अपेक्षा रखते हैं अन्यथा क्या मैं उन्हें लिपिबद्ध कर पाती?
आशा-निराशा, हँसने-रोने की लुकाछिपी के खेल में मैं अपने चरित्रों में भी समाहित हो जाती हूँ। कई बार ये चरित्र मुझसे दूर चले जाते हैं और पकड़ के बाहर हो जाते हैं। यह केवल मेरी बात नहीं है, कमोबेश सभी लेखकों की यही स्थिति है।
आरंभिक ओडिआ कहानी के लंबे बाट की मैं भी एक बटोही हूँ। मैं केवल लक्ष्यहीन चल रही हूँ। मेरी कथा मैंने अपनी तरह कही है। यदि मेरी कथा सुनकर कोई पलभर रुका, सुना या समझा तो यही मेरी सार्थकता है। इस संकलन में इसी तरह की कुछ कहानियाँ हैं।
ये कहानियाँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। उन सभी संपादकों के प्रति मैं कृतज्ञ हूँ। कई बार कुछ पाठकों की ओर से मेरे पास पत्र, फोन आदि आते रहते हैं। उन्हें शतशत नमन कि वे मुझे पढ़ते हैं और याद करते हैं।
"सूर्योदय के रंग" के प्रकाशन हेतु पक्षीघर प्रकाशन के सुयोग्य प्रकाशक श्री बनोज त्रिपाठी के आग्रह के लिए मैं उनकी ऋणी हूँ।
मेरा यह द्वितीय कहानी संग्रह यदि पाठकों को एक नई पुलक और सिहरन दे पाए तो मेरा श्रम सार्थक हो जाएगा।
नंदिता मोहंती
जीवन के अर्थ और अनुभवों को ले कर कहानी का सृजन होता है। मैं भी इस अनुभव का अपवाद नहीं हूँ। एक तरफ नौकरी दूसरी ओर घर- संसार के जंजाल के बीच हृदय में सृजनात्मकता की छटपटाहट ही मेरा कथा संसार है। मेरे चारों ओर घूमते मनुष्यों का चरित्र ही मेरी कहानी का चरित्र है। इनमें व्याप्त शून्यभाव, अहंकार, त्याग, प्रेम, तीतीक्षा सब मेरे कथानक के अंश हैं।
कभी-कभी मैं इनके जीवन में स्वयं का अनुभव कर पाती हूँ। कभी इनके हृदय-दर्पण में मुझे अपना प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है। यही अनुभव कभी-कभी शब्दबद्ध होकर मेरे हृदय में उतर आता है। ऐसा लगता है- वे चरित्र, घटनाएँ मेरे द्वारा उकेरे जाने की अपेक्षा रखते हैं अन्यथा क्या मैं उन्हें लिपिबद्ध कर पाती?
आशा-निराशा, हँसने-रोने की लुकाछिपी के खेल में मैं अपने चरित्रों में भी समाहित हो जाती हूँ। कई बार ये चरित्र मुझसे दूर चले जाते हैं और पकड़ के बाहर हो जाते हैं। यह केवल मेरी बात नहीं है, कमोबेश सभी लेखकों की यही स्थिति है।
आरंभिक ओडिआ कहानी के लंबे बाट की मैं भी एक बटोही हूँ। मैं केवल लक्ष्यहीन चल रही हूँ। मेरी कथा मैंने अपनी तरह कही है। यदि मेरी कथा सुनकर कोई पलभर रुका, सुना या समझा तो यही मेरी सार्थकता है। इस संकलन में इसी तरह की कुछ कहानियाँ हैं।
ये कहानियाँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। उन सभी संपादकों के प्रति मैं कृतज्ञ हूँ। कई बार कुछ पाठकों की ओर से मेरे पास पत्र, फोन आदि आते रहते हैं। उन्हें शतशत नमन कि वे मुझे पढ़ते हैं और याद करते हैं।
"सूर्योदय के रंग" के प्रकाशन हेतु पक्षीघर प्रकाशन के सुयोग्य प्रकाशक श्री बनोज त्रिपाठी के आग्रह के लिए मैं उनकी ऋणी हूँ।
मेरा यह द्वितीय कहानी संग्रह यदि पाठकों को एक नई पुलक और सिहरन दे पाए तो मेरा श्रम सार्थक हो जाएगा।
नंदिता मोहंती
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