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गरीब और ग्रामीण भारत को जितना अच्छा प्रेमचंद ने अपने शब्दों में व्यक्त किया है, हिंदी जगत में उसका कोई दूसरा उदाहरण मिलना नामुमकीन है. गांव के व्यक्ति की खुशियों और व्यथाओं का प्रेमचंद जितना मार्मिक चित्रण कोई दूसरा भारतीय लेखक कर ही नहीं पाया है. उनकी किताब पूस की रात भी एक गरीब व्यक्ति पर पड़ने वाली मौसम की मार को रेखांकित करता है. किताब में सर्दी का ऐसा अनुपम वर्णन मिलता है कि पाठक को भी ठंड का आभास होता है. सबसे अच्छी बात यह है कि वह किरदार के साथ जुड़ता है और उसके दर्द को महसूस करता है. As much as Premchand has expressed in his words to poor and rural India, it is impossible to get any…mehr

Produktbeschreibung
गरीब और ग्रामीण भारत को जितना अच्छा प्रेमचंद ने अपने शब्दों में व्यक्त किया है, हिंदी जगत में उसका कोई दूसरा उदाहरण मिलना नामुमकीन है. गांव के व्यक्ति की खुशियों और व्यथाओं का प्रेमचंद जितना मार्मिक चित्रण कोई दूसरा भारतीय लेखक कर ही नहीं पाया है. उनकी किताब पूस की रात भी एक गरीब व्यक्ति पर पड़ने वाली मौसम की मार को रेखांकित करता है. किताब में सर्दी का ऐसा अनुपम वर्णन मिलता है कि पाठक को भी ठंड का आभास होता है. सबसे अच्छी बात यह है कि वह किरदार के साथ जुड़ता है और उसके दर्द को महसूस करता है. As much as Premchand has expressed in his words to poor and rural India, it is impossible to get any other example of this in the Hindi world. The poignant portrayal of Premchand of happiness and misery of the village person has not been made by any other Indian writer. His book underlines the misery of weather falling on a poor person even on winter night. In the book, there is an unimaginable description of winter that the reader also feels cold. The best part is that it connects with the character and feels its pain. 'Poos ke raat' is one of Premchand's most beautiful creations.