उम्र आती गई अपने निशान छोड़ती गई साथ में कमजोरियों को भी बड़ी शिद्दत से जी-जान से ले आती गई तुम, उम्र का तकाजा कहकर स्वीकारती गई मगर अपनी कर्मठता, जीवटता और बिंदासपने को कभी नहीं छोड़ा तभी तो हर आघात हर चोट के बाद उतने ही उत्साह और नये जोश के साथ उनका सामना करती अंगूठा दिखाती
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