तुम गुलमोहर ... तुम्हारे हाथ में कलम और मेज़ पर कोरे पन्ने होते हैं, तुम्हारी आँखों के बदलते रंग देखकर मैं जान लेती हूँ कि, हर एक पन्ने की स्याही का रंग अलग अलग होगा !
आमुख
यदि कहूँ कि मेरी कवितायेँ मेरी रग रग में बसी हैं, मेरी शिराओं में, धमनियों मैं रक्त सी बहती हैं, तो अनुचित न होगा ! मेरी कवितायेँ मेरी कलाकृतियों की बोली बनकर जब कलादिर्धाओ में सजती है तब मेरे मन में संगीत बन के बजती हैं!
'तुम गुलमोहर' की अधिकांश कविताओं में वो अनुभूतियाँ हैं जो हर संवेदनशील स्त्री के अंतस में पलती हैं, जब वह अपने कर्तव्यों, दायित्वों का निर्वहन कर, एक दीर्घ अन्तराल के बाद स्वयं तक लौटती है, तब, स्वयं से किये वादे, उनमें बसी आहटें सुनना, उसकी एक अनमोल उपलब्धि होती है !
मेरे गुलमोहर जब झील को आईना बना कर स्वयं को निहारते हैं तब फूटती है कविता, रंग स्वतः ही कविता को रंगों में ढाल देते हैं और यादों का एक खूँटा गाड़ देते हैं ! बाल्यावस्था से लेकर अब तक, जीवन के हर आयाम में सलिल सरिता सी बहती कविता ने मुझे अपूर्व संबल दिया है, पन्नों पर उतर कर बहुधा वह उन्हें भारी, और मुझे हल्का कर जाती है !
गूढ़ जटिल शब्द मुझे उलझाते हैं, मुझे लगता है कि, सरल सहज भाषा में बुनी कविता सीधे आँखों से उतर मन की तहों में समा जाती है, उसके लिए किसी शब्दकोश की आवश्यकता नहीं होती ! इस काव्यसंग्रह में विविध भावों को झलकाती कवितायेँ हैं !
'तुम गुलमोहर' में जीवन साथी का हर पल साथ खड़े रहने का एहसास है, 'बेटी', 'जब बात होती है', 'सुकून चाहिए', 'उमड़े मन', 'सोच', 'यूँ तो',...मन के विविध भावों की प्रस्तुति हैं ! जीवन में भावों की वैतरणी में डूबते-उतराते न जाने कितने भाव पन्नों पर नौका से तैराए, पचास से भी अधिक साझा काव्य-संग्रहों में अपनी उपस्थिति दर्ज़ की, प्रमुख चर्चित पत्रिकाओं में मेरी लेखनी को स्थान मिला स विद्यार्थी जीवन में, विद्यालय व विश्वविद्यालय की पत्रिकाओं के हिंदी विभाग का सह-संपादन व संपादन करने का सौभाग्य मुझे मिला।
यह मेरा पांचवां काव्य-संग्रह है, 'धूप के टुकड़े', 'रेशम के थान सी', व 'मन लौटता है' ने पाठकों के बीच अपनी जगह बनाई ! चैथा काव्य-संग्रह 'आहटों के आईने में' प्रकाशनाधीन है, आशा करती हूँ कि अब, 'तुम गुलमोहर' को भी पाठक ह्रदय से स्वीकारेंगे।मैं डॉ मनोरमा जी व डॉ संजीव कुमार जी एवं इंडिया नेटबुक्स की हृदय से आभारी हूँ, जिनके सौजन्य से पन्नों पर बिखरी मेरी कवितायेँ पुस्तकों का आकार लेने जा रही हैं। 'तुम गुलमोहर' को मैं सुधि पाठकजनों व काव्य मनीषियों को समर्पित करती हूँ, सुझावों की अपेक्षा रहेगी।
क्यू 414 सेक्टर 21,
निर्मला सिंह
जलवायु विहार नॉएडा
आमुख
यदि कहूँ कि मेरी कवितायेँ मेरी रग रग में बसी हैं, मेरी शिराओं में, धमनियों मैं रक्त सी बहती हैं, तो अनुचित न होगा ! मेरी कवितायेँ मेरी कलाकृतियों की बोली बनकर जब कलादिर्धाओ में सजती है तब मेरे मन में संगीत बन के बजती हैं!
'तुम गुलमोहर' की अधिकांश कविताओं में वो अनुभूतियाँ हैं जो हर संवेदनशील स्त्री के अंतस में पलती हैं, जब वह अपने कर्तव्यों, दायित्वों का निर्वहन कर, एक दीर्घ अन्तराल के बाद स्वयं तक लौटती है, तब, स्वयं से किये वादे, उनमें बसी आहटें सुनना, उसकी एक अनमोल उपलब्धि होती है !
मेरे गुलमोहर जब झील को आईना बना कर स्वयं को निहारते हैं तब फूटती है कविता, रंग स्वतः ही कविता को रंगों में ढाल देते हैं और यादों का एक खूँटा गाड़ देते हैं ! बाल्यावस्था से लेकर अब तक, जीवन के हर आयाम में सलिल सरिता सी बहती कविता ने मुझे अपूर्व संबल दिया है, पन्नों पर उतर कर बहुधा वह उन्हें भारी, और मुझे हल्का कर जाती है !
गूढ़ जटिल शब्द मुझे उलझाते हैं, मुझे लगता है कि, सरल सहज भाषा में बुनी कविता सीधे आँखों से उतर मन की तहों में समा जाती है, उसके लिए किसी शब्दकोश की आवश्यकता नहीं होती ! इस काव्यसंग्रह में विविध भावों को झलकाती कवितायेँ हैं !
'तुम गुलमोहर' में जीवन साथी का हर पल साथ खड़े रहने का एहसास है, 'बेटी', 'जब बात होती है', 'सुकून चाहिए', 'उमड़े मन', 'सोच', 'यूँ तो',...मन के विविध भावों की प्रस्तुति हैं ! जीवन में भावों की वैतरणी में डूबते-उतराते न जाने कितने भाव पन्नों पर नौका से तैराए, पचास से भी अधिक साझा काव्य-संग्रहों में अपनी उपस्थिति दर्ज़ की, प्रमुख चर्चित पत्रिकाओं में मेरी लेखनी को स्थान मिला स विद्यार्थी जीवन में, विद्यालय व विश्वविद्यालय की पत्रिकाओं के हिंदी विभाग का सह-संपादन व संपादन करने का सौभाग्य मुझे मिला।
यह मेरा पांचवां काव्य-संग्रह है, 'धूप के टुकड़े', 'रेशम के थान सी', व 'मन लौटता है' ने पाठकों के बीच अपनी जगह बनाई ! चैथा काव्य-संग्रह 'आहटों के आईने में' प्रकाशनाधीन है, आशा करती हूँ कि अब, 'तुम गुलमोहर' को भी पाठक ह्रदय से स्वीकारेंगे।मैं डॉ मनोरमा जी व डॉ संजीव कुमार जी एवं इंडिया नेटबुक्स की हृदय से आभारी हूँ, जिनके सौजन्य से पन्नों पर बिखरी मेरी कवितायेँ पुस्तकों का आकार लेने जा रही हैं। 'तुम गुलमोहर' को मैं सुधि पाठकजनों व काव्य मनीषियों को समर्पित करती हूँ, सुझावों की अपेक्षा रहेगी।
क्यू 414 सेक्टर 21,
निर्मला सिंह
जलवायु विहार नॉएडा
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