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मानव सभ्यता का विकास इसी पावन धरा पर हुआ और देवों के विभिन्न अवतार भी इसी धरा पर हुए। विश्व को सभी प्रकार का ज्ञान भी भारतवर्ष ने ही दिया। जैसे-जैसे पृथ्वी पर मनुष्यों की संख्या बढ़ती गई वैसे-वैसे जरुरत अनुसार देश रूपी अन्य भूखण्ड खोजे गए, जहाँ बढ़ती आबादी के अनुसार मनुष्यों ने वहाँ शरण ली और अलग - अलग भूखण्डो पर अलग-अलग देश बसते चले गए और सभ्याताओं का विकास भी होता चला गया। कहते हैं कि भाग्य और कर्म तथा पुरुषार्थ के बिना मनुष्य को कुछ नहीं मिलता पर कई बार इन तीनों के बावजूद भी आदमी दुःखी रहता है। उसके इस दुःख का कारण होता है उसके घर, दुकान, आफिस गोदाम, कारखाने आदि का वास्तुनुकूल न बना होना।…mehr

  • Geräte: eReader
  • mit Kopierschutz
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  • Größe: 1.59MB
Produktbeschreibung
मानव सभ्यता का विकास इसी पावन धरा पर हुआ और देवों के विभिन्न अवतार भी इसी धरा पर हुए। विश्व को सभी प्रकार का ज्ञान भी भारतवर्ष ने ही दिया। जैसे-जैसे पृथ्वी पर मनुष्यों की संख्या बढ़ती गई वैसे-वैसे जरुरत अनुसार देश रूपी अन्य भूखण्ड खोजे गए, जहाँ बढ़ती आबादी के अनुसार मनुष्यों ने वहाँ शरण ली और अलग - अलग भूखण्डो पर अलग-अलग देश बसते चले गए और सभ्याताओं का विकास भी होता चला गया। कहते हैं कि भाग्य और कर्म तथा पुरुषार्थ के बिना मनुष्य को कुछ नहीं मिलता पर कई बार इन तीनों के बावजूद भी आदमी दुःखी रहता है। उसके इस दुःख का कारण होता है उसके घर, दुकान, आफिस गोदाम, कारखाने आदि का वास्तुनुकूल न बना होना। क्योंकि आदमी इन्ही स्थानों पर बैठकर अपने भविष्य की सारी प्लानिंग करता है, और वास्तु अनुसार जैसा उसका भवन बना होता है, वैसे ही विचार इसके मन में आते हैं। और उन्ही विचारों के आधार पर वह अपनी योजनाओं का ताना-बाना बुनता है। प्रस्तुत पुस्तक में मैंने प्रयास किया है कि भूखण्ड के चयन, शिलान्यास से लेकर भवन के या बहुमंजिली भवन के निर्माण तक और उसके बाद उसका मुहुर्त आदि की समस्त प्रक्रियाओं को, शास्त्रोक्त विधि अनुसार सरल एवं रोचक, शैली में समझा सकूँ। मेरा विश्वास है कि वास्तु साहित्य पर बाजार में उपलब्ध अनगिनत पुस्तकों में यह सबसे पहली अनूठी एवं उपयोगी पुस्तक है।


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