झारखंड की राजधानी रांची में पले बढ़े "कुमार निशांत" पेशे से एक विपणन अधिकारी हैं। जैसे संगीत सभी के जीवन का एक हिस्सा होता है वैसे ही कुमार के लिए था। लेकिन अक्सर कुछ गानों के बोल अपनी ओर आकर्षित कर जाते। बस वहीं से कुछ यूँ ही लिखने की कोशिश को संजोने के प्रयास में यह पहला कदम है। थोड़ी सी इस अबूझ दुनिया को समझने की कोशिश, कुछ अनुभव और चुटकी भर सुनी सुनाई बातें. इस अनोखे संगम ने कभी कशमकश को यूँ परिभाषित किया कि : " गहरे ख़्वाब से जागा सा, रोज़ सुबह चल देता हूँ, कशमकश का धागा सा, सिरहाने धर लेता हूँ" कहीं वक्त की खूंटी सजायी :
"हैं टंगे वक़्त की खूंटी पर, कुछ बिखरे पन्ने मेरे भी"
और कुछ कोमल एहसास अलसाई आँखों में बोल पड़े :
"अलसाई आँखें, धोखे से झाँकें, बाँधें ये कैसी डोर, जो खींचे तेरी ओर" इन्ही का अनुपात रहित मिश्रण है - "ज़िंदगी दर्द और एहसास"।
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