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'आनंदमठ' में 1770 ई. से 1774 ई. तक के बंगाल का चित्र खींचा गया है ! यह उपन्यास या ऐतिहासिक उपन्यास से बढ़कर है ! ऋषि बंकिम ने इसमें उस युग का सिर्फ फोटो नहीं खींचा, बल्कि राष्ट्र-विप्लब के भँवर में फँसे कुछ ऐसे जीवंत मनुष्यों के चित्र दिये हैं, जो आज भी हमें बड़े अपने लगते हैं ! इनमें सामान्य स्त्री-पुरुष भी हैं और महापुरुष भी ! वे आज भी हमें राष्ट्रोत्थान का मार्ग दिखाते हैं ! यह मार्ग है संघर्ष का, अन्याय से लोहा लेने का ! गीता की जो टेक है-युध्यस्व-युद्ध करो, वही टेक है 'आनंदमठ' की ! 'भगवतगीता' और 'आनंदमठ', इन दोनों में पलायनवाद नहीं है ! इसलिए हमारे स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान 'गीता' को जो…mehr

Produktbeschreibung
'आनंदमठ' में 1770 ई. से 1774 ई. तक के बंगाल का चित्र खींचा गया है ! यह उपन्यास या ऐतिहासिक उपन्यास से बढ़कर है ! ऋषि बंकिम ने इसमें उस युग का सिर्फ फोटो नहीं खींचा, बल्कि राष्ट्र-विप्लब के भँवर में फँसे कुछ ऐसे जीवंत मनुष्यों के चित्र दिये हैं, जो आज भी हमें बड़े अपने लगते हैं ! इनमें सामान्य स्त्री-पुरुष भी हैं और महापुरुष भी ! वे आज भी हमें राष्ट्रोत्थान का मार्ग दिखाते हैं ! यह मार्ग है संघर्ष का, अन्याय से लोहा लेने का ! गीता की जो टेक है-युध्यस्व-युद्ध करो, वही टेक है 'आनंदमठ' की ! 'भगवतगीता' और 'आनंदमठ', इन दोनों में पलायनवाद नहीं है ! इसलिए हमारे स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान 'गीता' को जो महत्त्व मिला, उससे कम महत्त्व 'आनंदमठ' को नहीं दिया गया ! इसीलिए 'आनंदमठ' के संतान-व्रतधरियोंका गीत 'वन्दे मातरम' हमारा राष्ट्रगीत है !

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