इसके पहले कि हम किसी के प्रति गहरे समझते सम्बंध को अंततोगत्वा ओछेपन में पावें, क्या यह उचित न होगा कि हम इस तथ्य की छानबीन करें कि, हम क्या हैं! क्या हम और हमारा जीवन गहरे पैठा हुआ है. क्यूँकि जो हम होंगे, उसी ढंग से उसी तल तक हमारी दृष्टि होगी. जैसा हमारा जीवन होगा, जैसी हमारी समझ होगी, ठीक वैसे ही हमारे सम्बंध निर्मित होंगे. प्रस्तुत अध्याय में हम एक तरफ़ अपने वर्तमान सतही ओछे जीवन की संरचना को समझ रहे हैं, साथ ही साथ दूसरी तरफ़ ऐसे जीवन का भी पता लगा रहे हैं, जो अतल गहराई लिए हुए है।
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