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चिंता को सही ग़लत या सम्यक् ठहराने से पहले क्यूँ न हम यह सवाल उठाएँ कि, जिस जीवन में चिंता उभर कर प्रकट होती है, वह जीवन क्या है? उसकी संरचना, उसकी प्रकृति क्या है. चिंता अथवा सम्भावित ख़तरा न होने पर भी क्या वह जीवन दुःख से, संताप से मुक्त है भी? कहीं ऐसा तो नहीं कि, चिंता उस वृक्ष में अनिवार्य फल के रूप में लगती है, जिसे हम जीवन समझते हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि चिंता बाहर से आरोपित होने के बजाय उसी वृक्ष की पूरी संरचना में से ही पैदा होती है, जिसे हम जीवन समझते हैं. उसके कारण भले बाहर से कुछ भी दिखाई देते हों ! कोरोना की चिंता न सही फ़ेसबुक पर पोस्ट की गई अपनी तस्वीर पर अधिक से अधिक लाइक पाने…mehr

  • Format: mp3
  • Größe: 14MB
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Produktbeschreibung
चिंता को सही ग़लत या सम्यक् ठहराने से पहले क्यूँ न हम यह सवाल उठाएँ कि, जिस जीवन में चिंता उभर कर प्रकट होती है, वह जीवन क्या है? उसकी संरचना, उसकी प्रकृति क्या है. चिंता अथवा सम्भावित ख़तरा न होने पर भी क्या वह जीवन दुःख से, संताप से मुक्त है भी? कहीं ऐसा तो नहीं कि, चिंता उस वृक्ष में अनिवार्य फल के रूप में लगती है, जिसे हम जीवन समझते हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि चिंता बाहर से आरोपित होने के बजाय उसी वृक्ष की पूरी संरचना में से ही पैदा होती है, जिसे हम जीवन समझते हैं. उसके कारण भले बाहर से कुछ भी दिखाई देते हों ! कोरोना की चिंता न सही फ़ेसबुक पर पोस्ट की गई अपनी तस्वीर पर अधिक से अधिक लाइक पाने की चिंता ही सही, चिंता तो चिंता ही है. इसे समझने के लिए हमें सबसे पहले उसको गहराई से देखना होगा, जिसे हम जीवन कहते हैं.

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