दुविधा का जन्म तब होता है, जब हम जीवन को सही उत्तर देने की कला को खो देते हैं. जब हम 'जो है' उस तथ्य के विपरीत एक छद्म, झूठा जीवन गढ़ लेते हैं, तो दुविधा का जन्म अपने आप हो ही जाता है. जब हमारा जीवन तथ्य के कदम से कदम मिलाकर नहीं बढ़ता बल्कि योजनाओं में, ख़्यालों में सरकने लगता है, तब उन ख़्यालों के 'विपरीत' गढ़ लिए जाते हैं जिनके बीच चुनाव की दुविधा का जन्म हो जाता है. इस अध्याय में हम साथ साथ चलते हुए दुविधा की संरचना को ऐसे समझने का प्रयत्न करेंगे, जिससे दुविधा का हमारे जीवन से जड़ से अंत हो सके!
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