निकट होना, निकट से भी निकट होना सम्बंध नहीं है. यह सम्बंध के नाम पर गहरा से गहरा धोखा है, जिसे हम इंसान न जाने कब से निभाते चले आ रहे हैं. निकट होना वस्तुतः दूर जाने का पहला कदम है. यह शायद अस्तित्व के बड़े नियमों में से एक है. जो भी जीवंत चीज़ जितना निकट आएगी, उतनी ही उससे दूर जाने की प्रवृत्ति बढ़ती जाएगी. जितनी तीव्रता से निकट आएगी, उतनी तीव्रता से दूर भी हो जाएगी. तभी तो जितने गहरे तथाकथित प्रेमी होते हैं, उतनी ही गहराई से एक दूसरे के प्रति नफ़रत भी पैदा हो जाती है. हम निकट होना भर जानते हैं, शरीर से निकट होना जानते हैं, मन से निकट होना जानते हैं, भावों से निकट होना जानते हैं. मीठे शब्दों से सुहाने ख़्यालों से हम निकट ही हो सकते हैं, सम्बंधित नहीं. इस अध्याय में हम सम्बंध के नाम पर फैले धोखे को प्रकाश में ला रहे हैं, व सम्बंध के ऐसे स्वरूप का अन्वेषण कर रहे हैं, जो अटूट होने के साथ अनंत समृद्धि लिए हुए है।
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