सिड... मैंने कहा था न, मुझे उम्मीदें मत दो. मुझे ख़ुश रह लेने दो उतने में जितना हासिल है. तुमने हाथ पकड़ कर कहा था मुझसे, हम साथ हैं, साथ रहेंगे ऐना... हमेशा के लिए. मैंने ख़ुशी-ख़ुशी तुम्हारी बात मान ली थी. न जाने क्यों तुम्हारे पूरे वजूद पर अपना एकल हक़ समझ बैठी थी. बार-बार याद करती हूँ वह रात जब तुम मुझसे बात करने की खातिर ठण्ड में बाहर बैठे रहे थे. सोचती हूँ, कहाँ से आया था वह आशिक़?
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