उपन्यास "बलवा" नब्बे के दशक में लगातार होने वाले "बलवों" और उसके पीछे के बाहुबलियों की जबरदस्त कहानी है। एक तरफ धर्म के ठेकेदार मौलाना मुश्ताक - पं. संकठा प्रसाद समाज के ताने-बाने को अपने स्वार्थो की बलि चढ़ाने के लिए हिंसा-खून खराबा और आतंक का शातिरी शुतुरमुर्गी षडयन्त्र दिखेगा, तो वहीं पुनीत-मुशीर जैसे नौजवान अमन और इन्साफ के लिए अकेले संघर्ष करते नजर आयेंगें। गजाला, मौलाना मुश्ताक से बगावत कर पुनीत के साथ अमन के आस की अलख जरूर जगाती है, पर समाज उनका साथ नही देता। पुलिस-प्रशासन का नकारात्मक-घुटना टेकू चरित्र, तो कुछ पुलिस-प्रशासनिक अफसरों का सकारात्मक पहलू भी आप को "बलवे" की हकीक़त का एहसास कराएगा। "बलवा" जरूर नब्बे के दशक की घटनाओं पर आधारित कहानी है, पर आज भी समाज ऐेसे चरित्रें, घटनाक्रमों से अछूता नहीं है।
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