बांग्लादेश विद्रोह के ज़माने में पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी का डिप्टी डायरेक्टर भारत में शरण लेने के लिए भारतीय एजेंसी से सम्पर्क करता है. क्या उस पर भरोसा किया जा सकता है - जर्नलिस्ट डिटेक्टिव सुनील को नहीं लगता. हिंदी क्राइम लेखन के बेताज बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक की कलम से एक सनसनीख़ेज़ स्पाई थ्रिलर, सुनील का एक और इंटरनेशनल कारनामा.
Dieser Download kann aus rechtlichen Gründen nur mit Rechnungsadresse in A, D ausgeliefert werden.