मेरे पास नहीं है कोई सुरक्षा कवच। मैं फिर भी प्रेतों को आमन्त्रित करती हूँ। आओ, मुझे और भी तुम्हारी कथाएँ कहनी हैं...अब तुम दे जाओ कथाएँ। कह जाओ अपने दमन की कथाएँ, शोषण की दास्तानें और अतृप्त इच्छाओं की अर्जियाँ दे जाओ। उन्हें कथा में पूरी करूँगी। आख़िर कहानी में एक मनवांछित संसार रचने का साहस तो है न मेरे पास। मेरा बचपन गाँव में अधिक गुज़रा है, सो मेरे पास वहीं की कहानियाँ बहुत हैं। शहरों में ज़िन्दा भूत मिले थे। उनकी कथाएँ तो लिखती ही रहती हूँ। पहली बार ऐसे भूतों की कहानियाँ लिखी हैं... अब आपके हवाले हैं भूत कथाएँ... शुक्रिया उन भूतों का जिन्होंने पीछे पड़कर लिखवा लिया। उन्हें भुतहा सलाम। किताब पढ़ते पीछे मुड़कर मत देखना... भूत भाग जायेगा।
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