मैं इतना भर कहूँगा कि यह किताब 'बॉम्बे टॉकी' उस जुनून भरे सफ़र का पहला बयान है, जिसे मैं तमाम उम्र ख़त्म नहीं करना चाहता या कहूं कि खत्म कर नहीं सकता। हमारा सिनेमा मुझ जैसे करोड़ा¬ शैदाइया¬ की तमाम उम्र से ज़्यादा बड़ा है। मौजूदा किताब मेरे एक कॉलम 'आपस की बात' का संग्रह है। 10 जून 2007 से लेकर अब तक यह कॉलम लगातार 'दैनिक भास्कर' के रविवारीय संस्करण 'रसरंग' में हर हफ्ते छपता रहा है। पाठका¬ की हौसला अफज़ाई के नतीजे में ही यह काम हो पाया है और उसी हौसले के चलते ही यह किताब भी पेश कर रहा हूँ। इस किताब के बारे में यह बताना जरूरी है कि इसमें अब तक छपे हुए सारे कॉलम शामिल नहीं हैं। वजह यह है कि सारे कॉलम सिनेमा और संगीत के बारे में नहीं लिखे हैं। दूसरे यह कि जो इस विषय पर लिखे भी हैं उन सबको एक साथ पेश कर पाना फिलहाल थोड़ा मुश्किल है। लिहाजा यह संग्रह जून 2007 से लेकर अगस्त 2008 तक प्रकाशित हुए कॉलम में से चयनित है। बाकी अगली खेप में ।-'भूमिका' से
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