हिन्दी जगत में अपनी अलग और विशिष्ट पहचान के लिए मशहूर कृष्णा सोबती का हरेक उपन्यास विशिष्ट है। शब्दों की आत्मा को छूने-टटोलने वाली कृष्णा जी ने दिलो-दानिश में दिल्ली की एक पुरानी हवेली और उसमें रहनेवाले लोगों के माध्यम से तत्कालीन जीवन और समाज का जैसा चित्राण किया है, वह अनूठा है। हालाँकि इस उपन्यास का कथानक एक सामन्ती हवेली और रईस समाज-व्यवस्था से वाबस्ता है लेकिन कृष्णा जी ने जिस रचनात्मक कौशल और तटस्थ आत्मीयता के साथ उसकी अच्छाइयों और बुराइयों का चित्राण किया है वह अद्वितीय है। देश की आज़ादी से पहले हमारे समाज में सामन्ती पारिवारिक व्यवस्था थी जिसमें रईसों की पत्नी के अलावा दूसरी कई स्त्रिायों से सम्बन्ध भी मान्य थे लेकिन इस उपन्यास का मुख्य पात्रा कृपानारायण पत्नी के अलावा मात्रा एक अन्य स्त्री से सम्बन्ध रखता है लेकिन दोनों स्त्रिायों और उनके बच्चों की परवरिश जिस नेकनीयती से करता है वह क़ाबिले-तारीफ़ है।
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