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तुमने कभी उसे देखा है ?..... किसे ?.....दुख को... मैंने भी नहीं देखा, लेकिन जब तुम्हारी कज़िन यहाँ आती है, मैं उसे छिप कर देखती हूँ। वह यहाँ आकर अकेली बैठ जाती है। पता नहीं, क्या सोचती है और तब मुझे लगता है, शायद यह दुख है! निर्मल वर्मा ने इस उपन्यास में 'दुख का मन' परखना चाहा है- ऐसा दुख, जो ज़िन्दगी के चमत्कार और मृत्यु के रहस्य को उघाड़ता है...मध्यवर्गीय जीवन-स्थितियों के बीच उन्होंने बिट्टी, इरा, नित्ती भाई और डैरी के रूप में ऐसे पात्रों का सृजन किया है, जो अपनी-अपनी ज़िन्दगी के मर्मान्तक सूनेपन में जीते हुए पाठक की चेतना को बहुत गहरे तक झकझोरते हैं। पारस्परिक सम्बन्धों के बावजूद सबकी…mehr

  • Format: mp3
  • Größe: 262MB
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Produktbeschreibung
तुमने कभी उसे देखा है ?..... किसे ?.....दुख को... मैंने भी नहीं देखा, लेकिन जब तुम्हारी कज़िन यहाँ आती है, मैं उसे छिप कर देखती हूँ। वह यहाँ आकर अकेली बैठ जाती है। पता नहीं, क्या सोचती है और तब मुझे लगता है, शायद यह दुख है! निर्मल वर्मा ने इस उपन्यास में 'दुख का मन' परखना चाहा है- ऐसा दुख, जो ज़िन्दगी के चमत्कार और मृत्यु के रहस्य को उघाड़ता है...मध्यवर्गीय जीवन-स्थितियों के बीच उन्होंने बिट्टी, इरा, नित्ती भाई और डैरी के रूप में ऐसे पात्रों का सृजन किया है, जो अपनी-अपनी ज़िन्दगी के मर्मान्तक सूनेपन में जीते हुए पाठक की चेतना को बहुत गहरे तक झकझोरते हैं। पारस्परिक सम्बन्धों के बावजूद सबकी अपनी-अपनी दूरियाँ हैं, जिन्हें निर्मल वर्मा की क़लम के कलात्मक रचाव ने दिल्ली के पथ-चौराहों समेत प्रस्तुत किया है। शीर्षस्थ कथाकार निर्मल वर्मा की अविस्मरणीय कृति, जो रचनात्मक स्तर पर स्थूल यथार्थ की सीमाओं का अतिक्रमण करके जीवन-सत्य की नयी सम्भावनाओं को उजागर करती है। (C) 2018 Vani Prakashan

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