कैथरीन के एक अधूरे उपन्यास का एक अंश है: ''इस जीवन को जियो, जूलियट। क्या शॉपेन अपनी आकांक्षाओं को, अपनी नैसर्गिक इच्छाओं को पूरा करने से डरा था? नहीं, इसीलिए वह इतना महान है। तुम ठीक उसी चीज को अपने से दूर क्यों कर रही हो जिसकी तुम्हें जरूरत है - परम्पराओं की वजह से? अपनी नैसर्गिकता को इस तरह बौना क्यों बनाती हो, क्यों अपना जीवन बरबाद करती हो?...तुमने उन सबसे आंखें मंूद ली हैं, कान बन्द कर लिये हैं जिसके लिए कोई इनसान जी सकता है।'' जीने के लिए यह उद्बोधन, परम्पराओं और रूढ़ियों का विरोध, यह विचार कि भविष्य अपनी इच्छाओं से भी बनता है, यह मैन्सफील्ड के लेखन का केन्द्रीय तत्व है। यहां जो बातें सपाट ढंग से कह दी गई हैं, आगे अपनी कहानियों के ताने-बाने में इस सोच के धागों को करीने से बुनना उसने सीख लिया। सामाजिक यथार्थ, कमजोरी के प्रति सहानुभूति और बाद के दौर में, अन्तश्चेतना पर जोर उसकी कहानियों का मूल तत्व है। उसके सभी कहानी संग्रहों का रूसी तथा सोवियत संघ की अन्य भाषाओं मंे अनुवाद हुआ और वह वहां बेहद लोकप्रिय रही।
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