कश्कोल यानी भिक्षपात्र. इस भिक्षपात्र का खली रहना ही लेखक के जीवन को अर्थ और गति देता है. इसका भर जाना यानी लेखक का अंत हो जाना. इस उपन्यास ने हिंदी साहित्य जगत में अपने लिए एक लग स्थान बनाया है! इस उपन्यास को ऑडियो में पहली बार सुना जा सकता है. इसे सुन कर मन रूपी कशकोल के भरे होने का अहसास होता है! इसे ज़रूर सुनें!
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