भारत के स्वातंत्र्य संग्राम के इतिहास में खुदीराम बोस का नाम अमिट है। छोटी-सी आयु में देश के लिए आत्मोत्सर्ग कर उन्होंने जाने कितने युवाओं-किशोरों के हृदय में देश पर मर-मिटने की भावना उत्पन्न कर दी थी. जैसी निष्कंप दृढ़ता के साथ उन्होंने मुक़दमे का सामना किया और फांसी के तख्ते तक गए, वह बताता है कि कम आयु होने पर भी उनके अंतरतम की प्रेरणाएं उन्हीं संकल्पी विचारों से जुड़ी थीं, जिनने अलग-अलग युगों और देशों में क्रांतिकारियों के लिए आत्म-बलिदान की राह उजागर की. शोध व प्रमाणों पर आधारित यह कृति एक किशोर के क्रांतिकारी बनने और अन्याय के प्रतिकार की उसके हृदय की अदम्य भावना का आख्यान है - संक्षिप्त पर अत्यंत मार्मिक और गहन! ©Samvad Prakashan
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