क़स्बों के प्यार में उस ज़माने में चिट्ठी का होना बड़ा ज़रूरी होता था। वे किस्मत वाले होते थे जो आपस में मिल जल पाते थे, लेकिन उनकी चिट्ठियाँ आपस में मिलती जुलती रहती थीं। लेकिन असली चुनौती होती थी पहली चिट्ठी लिखने की। घर में छुप छुपाकर लिखना और निरापद अपने मंज़िल तक पहुँचा देना- लिखती हूँ खून से स्याही न समझना/ दिल से प्यार करती हूँ जाली ना समझना!
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