'महाभारत' यद्ध-कथा मात्र नहीं है। वस्तुतः वह व्यक्ति तथा समाज के विकास की यात्रा-गाथा है। युद्ध उसके मध्य में है। युद्ध से पूर्व वे कारण और परिस्थितियाँ हैं जो यद्ध तक ले जाती हैं, और युद्ध के पश्चात् वे परिस्थितियाँ तथा मनोविज्ञान हैं जिससे मनुष्य युद्धक मनःस्थिति से ऊपर उठने तथा शाश्वत सुख और शांति को प्राप्त करने की यात्रा आरम्भ करता है। महाभारत की कथा के विभिन्न खण्डों में विभिन्न चरित्र घटनाओं के अनुसार महत्त्वपूर्ण होकर उस खण्ड के नायक प्रतीत होने लगते हैं, किन्तु सम्पूर्ण कथा का नायक धर्मराज युधिष्ठिर ही है। उसके परिवेश का निर्माण उस दिन से आरम्भ होता है जिस दिन भीष्म अपने पिता शान्तनु के दूसरे विवाह के लिए मार्ग प्रशस्त करने हेतु दो प्रतिज्ञाएँ करते हैं। 'बन्धन' शान्तनु, सत्यवती तथा भीष्म के मनोविज्ञान तथा जीवन-मूल्यों की कथा है। घटनाओं की दृष्टि से यह सत्यवती के हस्तिनापुर में आने तथा हस्तिनापुर से चले जाने के मध्य की अवधि की कथा है, जिसमें जीवन के उच्च आध्यात्मिक मूल्य जीवन की निम्नता और भौतिकता के सम्मुख असमर्थ होते प्रतीत होते हैं, और हस्तिनापुर का जीवन महाभारत के युद्ध की दिशा ग्रहण करने लगता है। उस भावी विनाश से मानवता को बचाने के लिए कृष्ण द्वैपायन व्यास अपनी माता सत्यवती को हस्तिनापुर से निकाल अपने साथ ले जाते हैं, किन्तु तब तक हस्तिनापर शान्तन, सत्यवती तथा भीष्म के। कर्म-बन्धनों में बँध चुका है और भीष्म भी उससे मक्त होने की स्थिति में नहीं रहे है।
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