मैं expressive हूँ और दुष्यंत तुम शांत. आसानी से अपने मन की बातों को कहते नहीं... पर मैं भी कुरेद-कुरेद कर सब कहलवा लेती हूँ. तुम अक्सर कहते हो कि मैं बहुत डेयरिंग हूं. दुनिया की नहीं सिर्फ अपने दिल की सुनती हूं. तुम ही बताओ अगर मैं दिल की न सुनती तो हम साथ कैसे होते? एक लल्लू हो तो दूसरे को तो स्मार्ट होना चाहिए या नहीं? प्यार में जब तक दीवानगी न हो वो प्यार कैसा!
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