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हिंदी में ऐसे लेखक अधिक नहीं हैं जिनकी रचनाएं आम पाठकों और आलोचकों के बीच सामान रूप से लोकप्रिय हो. ऐसे लेखक और भी कम हैं जिनके पैर किसी विचारधारा की बेड़ी से जकड़े ना हो. मनोहर श्याम जोशी के लेखन,पत्रकारिता को अपने शोध-कार्य का विषय बनाने की 'रिसर्च स्कोलर्स' में होड़ लगी थी. प्रभात रंजन ने न सिर्फ जोशी जी के लेखन पर अपना शोध-कार्य बखूबी किया बल्कि उनके साथ बिताए गए समय को इस संस्मरण की शक्ल देकर एक बड़ी ज़िम्मेदारी पूरी की है. "प्रभात ने आत्मीय वृत्तांत लिखा है." –भगवती जोशी (मनोहर श्याम जोशी की सहधर्मिणी) - हिंदी फ़िल्मों और डेली सोप ओपेरा के लीजेंड्री राइटर मनोहर श्याम जोशी के जीवन से…mehr

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Produktbeschreibung
हिंदी में ऐसे लेखक अधिक नहीं हैं जिनकी रचनाएं आम पाठकों और आलोचकों के बीच सामान रूप से लोकप्रिय हो. ऐसे लेखक और भी कम हैं जिनके पैर किसी विचारधारा की बेड़ी से जकड़े ना हो. मनोहर श्याम जोशी के लेखन,पत्रकारिता को अपने शोध-कार्य का विषय बनाने की 'रिसर्च स्कोलर्स' में होड़ लगी थी. प्रभात रंजन ने न सिर्फ जोशी जी के लेखन पर अपना शोध-कार्य बखूबी किया बल्कि उनके साथ बिताए गए समय को इस संस्मरण की शक्ल देकर एक बड़ी ज़िम्मेदारी पूरी की है. "प्रभात ने आत्मीय वृत्तांत लिखा है." –भगवती जोशी (मनोहर श्याम जोशी की सहधर्मिणी) - हिंदी फ़िल्मों और डेली सोप ओपेरा के लीजेंड्री राइटर मनोहर श्याम जोशी के जीवन से जुड़े अनेक वृत्तांत इस पुस्तक में हैं जो न सिर्फ दिलचस्प हैं, बल्कि प्रेरक और ज्ञानवर्द्धक भी हैं. - हिंदी कथा-साहित्य/ पत्रकारिता/ फिल्म/ टेलिविज़न में रूचि रखने वालों के लिए अनिवार्य पठनीय सामग्री. - संस्मरण विधा में एक उपलब्धि जैसी किताब.

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