लखनऊ के नवाबों के किस्से तमाम प्रचालित हैं, लेकिन अवाम के किस्से किताबों में बहुत कम मिलते हैं. जो उपलब्ध हैं, वह भी बिखरे हुए. यह किताब पहली बार उन तमाम बिखरे किस्सों को एक जगह बेहद खूबसूरत भाषा में सामने ला रही है, जैसे एक सधा हुआ दास्तानगो सामने बैठा दास्तान सुना रहा हो. खास बातें नवाबों के नहीं, लखनऊ के और वहाँ की अवाम के किस्से हैं. यह किताब हिमांशु की एक कोशिश है, लोगों को अदब और तहजीब की एक महान विरासत जैसे शहर की मौलिकता के क़रीब ले जाने की. इस किताब की भाषा जैसे हिन्दुस्तानी ज़बान में लखनवियत की चाशनी है.
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