राम अयोध्या को छोड़ वन के तरफ़ प्रस्थान करता हैं। दंडकारण्य जाते हुए राम की भेंट महाराज दशरथ के पुराने मित्र निषादराज गुह से होती हैं। गंगा पार करने के लिए राम को नाव की जरूरत हैं। लेकिन केवट राम को नाव में ले जाने से इनकार कर देता हैं।
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