ज़िक्र है हज़रत अमीर ख़ुसरो का, जो फ़ारसी ज़बान के महान शायर थे, साहित्य-कार थे, संगीत-कार थे, भारत की सबसे बड़ी और ख़ूबसूरत आवाज़ यानी हिन्दी और उर्दू ज़बानों की बुनियाद रखने वाले थे। सात-सात बादशाहों के दरबारों के ओहदे दार होने के बावजूद सच्चे सूफ़ी संत थे, फ़िलॉस्फ़र थे, समाज सुधारक और हमारी सबसे बड़ी पहचान हिन्दू-मुस्लिम मुश्तरका तहज़ीब यानी सांझी संस्कृति के विकास में जिनका योगदान सबसे ज़्यादा है। Written by Farooq Argali
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