मुशायरे आम तौर पर ऑडिटोरियम या किसी बड़े हाल में कराए जाते हैं. लेकिन मियाँ जुम्मन और उनके जैसे शायर मिज़ाज लोग अगर ट्रेन में हमसफ़र हों तो महफ़िल खुद-ब-खुद सज जाती है. इस सफर में तो उनके साथ एक शायरा भी हैं जिनके साथ कभी जुम्मन मियाँ का प्यार का रिश्ता था. शेरो शायरी की महफिल में कैसे दो दिल अपने गिले-शिकवे और प्यार का इजहार करते हैं... कैसे लगती है रौनक इस महफिल में और एक आम सा सफ़र बन जाता है खास. जानने के लिए सुनें ट्रेन में मुशायरा..
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