इश्क़ कब धर्म और मजहब की दीवारों को मानता है...उसकी अपनी एक अलबेली, सपनीली दुनिया होती है... कुछ ऐसा ही माधव और आऱफा के साथ है... एक छोटी सी मुलाकात दोस्ती में बदल गई और दोस्ती प्यार में. लेकिन दोनों का प्यार जमाने को रास नहीं आता और आरफा माधव से दूर चली जाती है. सात साल बाद परिस्थितियां दोनों को एक बार फिर एक दूसरे के सामने ला खड़ा करती हैं. क्या आरफा माधव के प्यार को कबूल करेगी?
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