"वैशाली की नगरवधू" के लेखक आचार्य चतुरसेन शास्त्री का यह उपन्यास उनके अपने शब्दों में प्राग्वेदकालीन नर, नाग, देव, दैत्य-दानव, आर्य-अनार्य का इतिहास रस में डूबा विवरण है। इस उपन्यास का नायक रावण है और उपन्यासकार उसके चरित्र को एक नयी रोशनी में उद्घाटित करता है।
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